“किसी को बल का,तो किसी को विद्या का, तो किसी को अपनी बुद्धि का अहंकार है। इस अहंकार रुपी दानव से कोई नहीं बच पाया है”
परमपूज्य त्रिकालदर्शी संतश्री देवराहा शिवनाथ दासजी महाराज का आज श्रद्धालु भक्तों ने डुमरांव में भव्य स्वागत किया गया।इसके बाद भक्तों ने संतश्री देवराहाशिवनाथदासजी महाराज की पूजा अर्चना की। पूजा अर्चना के बाद श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संत श्री देवराहा शिवनाथ दास जी महाराज ने कहा कि रावण को अपने बल,बुद्धि, विद्या आदि का अहंकार था।वैसे तो बहुत से राजा-महाराजा भी इस अहंकार से अछूते नहीं थे।
आज धनी व्यक्ति से लेकर निर्धन तक में अहंकार भरा है। किसी को बल का,तो किसी को विद्या का, तो किसी को अपनी बुद्धि का अहंकार है। इस अहंकार रुपी दानव से कोई नहीं बच पाया है। कहने का तात्पर्य है कि यदि अपने को अहंकार से बचाना है तो हमें (जीव) को प्रभु के शरण का अवगाहन करना होगा। तभी जाकर हम अपने आप को इस अहंकार रुपी दानव से बचा पायेंगे।अन्यथा नहीं।संत श्री देवराहा शिवनाथ दास जी महाराज ने आगे कहा कि जब हम प्रभु के नाम रुपी नौका का सहारा लेंगे तो हम षडविकार ( काम,क्रोध,मद,मोह,लोभ, माया ) से अपने को बचा पायेंगे अन्यथा नहीं।तुलसीकृत रामायण में भी वर्णित है कि-
।सन्मुख होहिं जीव मोहि जबहिं।
।जन्म कोटि अघ नासहिं तबहिं।।
संतश्री ने कहा कि जब जीव नाम रुपी नौका पर अपने को सवार कर प्रभु के सन्मुख कर देता है तो उसके करोड़ों जन्म के अघ का नाश हो जाता है और वह जीव धन्य-धन्य हो जाता है।अतैव हमलोगों को हमेशा प्रभु के नाम का स्मरण करना चाहिए।