12 फ़रवरी सन् 1824 में राजकोट जिले के मोरबी, गुजरात में जन्मे थे दयानंद सरस्वती जी
आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक, अखंड ब्रह्मचारी तथा आर्य समाज के संस्थापक “महर्षि” स्वामी दयानन्द सरस्वती जी की जयंती पर उन्हें शतशः नमन करता हूँ !
12 फ़रवरी सन् 1824 में राजकोट जिले के मोरबी, गुजरात में जन्मे दयानंद सरस्वती जी का असली नाम मूलशंकर था। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए। महर्षि दयानन्द के हृदय में आदर्शवाद की उच्च भावना, यथार्थवादी मार्ग अपनाने की सहज प्रवृत्ति, मातृभूमि की नियति को नई दिशा देने का अदम्य उत्साह, धार्मिक-सामाजिक-आर्थिक व राजनैतिक दृष्टि से युगानुकूल चिन्तन करने की तीव्र इच्छा तथा आर्यावर्तीय (भारतीय) जनता में गौरवमय अतीत के प्रति निष्ठा जगाने की भावना थी। उन्होंने किसी के विरोध तथा निन्दा करने की परवाह किये बिना आर्यावर्त (भारत) के हिन्दू समाज का कायाकल्प करना अपना ध्येय बना लिया था। उन्होंने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त (भारत) को स्वंत्रता दिलाने के लिए मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। ‘वेदों की ओर लौटो’ यह उनका प्रमुख नारा था। स्वामी दयानंद ने वेदों का भाष्य किया इसलिए उन्हें ‘ऋषि’ कहा जाता है क्योंकि ‘ऋषयो मन्त्र दृष्टारः’ (वेदमन्त्रों के अर्थ का दृष्टा ऋषि होता है)। उन्होने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होंने ही सबसे पहले 1876 में ‘स्वराज्य’ का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य बल गंगाधर तिलक ने आगे बढ़ाया।