-शोभित सुमन
भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी एक लब्धप्रतिष्ठ हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते है।
अटल जी राजनैतिक शुचिता के एकमात्र प्रतीक बनकर भारतीय राजनीति के आकाश पर किसी जाज्वल्यमान नक्षत्र की भांति आज भी जगमगा रहे है।
वे राजनेता के साथ बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति रहे है। एक मुखर वक्ता, राजनेता, पत्रकार, संचारक के रूप में उनकी कार्यशैली की सफलता पूरे राष्ट्र में जानी जाती है। सत्ता के शिखर पर चढ़ने के बाद भी वाजपेयी जी की सादगी वैसे ही कायम थी। सही मायनों में वाजपेयी जी जैसा विरला युगपुरुष शायद ही भारतीय राजनीति को भविष्य में मिल पाए। उन्हें साहित्य और कविताओं से विशेष स्नेह था। उनकी कई कविताएं आज भी जैसे नई ऊर्जा का संचार करती है।
“तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर, फिर मुझे आज़मा। मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।”
“टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं।”
ऐसी कई कविताओं ने उस राजनीतिक योद्धा को एक अलग प्रभावशाली व्यक्तित्व बनाने की ओर अग्रसर किया।
वाजपेयी जी को फिल्मों, नाटकों का भी शौक था। एसडी बर्मन उनके पसंदीदा संगीतकार थे ऐसा कई बार हुआ जब वाजपेई जी सिनेमा हॉल में सिनेमा देखने पहुंच जाया करते थे राजनीति के इस सिर पर शायद ही भारतीय राजनीति में कोई ऐसा नेता हुआ हो जिसने विपक्ष में भी अपनी प्रसिद्धि स्थापित की थी।
बड़ा-बड़ा जनसमुदाय उनकी वाणी को सुनने के लिए खिंचा चला आता था। अटल जी एक बेजोड़ राजनेता के साथ प्रखर राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले पत्रकार भी थे। इनके द्वारा प्रकाशित पत्रों में पाञ्चजन्य आज भी यह कार्य कर रहा है। बाद में अटल जी राजनीति में प्रवेश कर देशहित से जुड़े अनगिनत कार्य किए। चाहे वह पक्ष में रहे या विपक्ष में एक मजबूत राजनेता के तौर पर उन्होंने अपनी छवि को पूरे राष्ट्र में मजबूती से उकेरा।अटल जी आने वाली पीढ़ी के लिए स्तुत्य एवं अनुकरणीय हमेशा रहेंगे।
(मीडिया शोधार्थी महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय)