बिहार में राजनीतिक गॉशिप के बीच नीतीश सरकार लगातार अपने विकास के कार्यों को गति देने में जुटी हुई है। उसे इसकी तनिक भी परवाह नहीं कि कौन क्या कह रहा है। उसे तो अपने कार्यशैली और बिहारवासियों की सुविधाओं और रोजगार के साथ ही पढ़ाई, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर फोकस है। इसी विकास के मॉडल को देश के कई राज्य अपना रहे हैं तो केंद्र सरकार भी बिहार सरकार की कार्य प्रणाली को अपना रही है।
सूबे का विकास बनाया मुद्दाः
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2005 से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। सूबे का विकास इनका पहला मुद्दा है और विकास की बातों से सभी वाकिफ भी हैं। जिस बिहार में लोग लालटेन युग में अपराध के साए में जीवन जी रहे थे उस बिहार की तस्वीर को नीतीश कुमार ने बदलकर रख दी है। बिहार के शहर से लेकर गांव तक की सड़कों पर गाड़ियां फर्राटे भर रही हैं तो रात के अंधेरे में शहर के साथ ही गांव भी रौशनी से जगमगा उठा है। लोग लालटेन युग को पूरी तरह से भूल गए हैं।
लालू राज बिहार रसातल में !
वर्ष 2005 से पहले बिहार में लालू राज हुआ करता था। उस दौर में बिहार की सड़कों के बारे में कहा जाता था कि सड़क में गड्ढे हैं या गड्ढे में सड़क पता ही नहीं चलता है। एक बार तो बड़ बोलेपन के शिकार लालू प्रसाद ने तो यहां तक कह दिया था कि बिहार की सड़कें अभिनेत्री हेमा मालिनी की गाल की तरह बनेंगी। मगर वो बातें सिर्फ कागजी हवाबाजी बनकर रह गई थी। उस दौर में बिहार अपराध, अपहरण, लूट, डकैती, बलात्कार, सामूहिक नरसंहार, फिरौती का केंद्र बन गया था। उस दौर में बिहार कई आपराधिक हिस्सो में बंट गया था। इसका प्रमाण है भागलपुर का दंगा, सिवान के भाईयों का एसिड में डूबाकर हत्या, बथानी, सेनारी नरसंहार तो इसकी एक बानगी है और भी कई ऐसे जघन्य अपराधों का केंद्र बना हुआ था। व्यवसायी पलायन करने लगे थे। घर की बेटियां स्कूल तक का तालीम नहीं ले पाती थीं, तो कॉलेज की बात कौन करे। शाम होते बिहार बंद कमरें खो जाता था।
जब कांटों का ताज मिलाः
बिहार की जनता ने नीतीश कुमार के अटल जी की सरकार में रहते हुए रेलमंत्री और कृषि मंत्री के तौर पर काम देखा तो उन्हें नीतीश कुमार पर भरोसा जगा और 2005 में नीतीश कुमार को गद्दी सौंप दी गई। नीतीश कुमार सत्ता में तो आए मगर इनके लिए कांटों का ताज मिला। बिहार में सिर्फ लालू-बालू और आलू हुआ करता था। उस कॉन्सेप्ट को नीतीश कुमार ने बदला और बिना किसी की बात सुने बिहार के विकास के लिए दिनरात एक कर दिया। पहले फेज में सड़कों को सुदृढ़ किया, उसके बाद बिहार की जनता को अंधेरे से बाहर निकालने के लिए बिजली को दुरूस्त किया। जिस बिहार में बच्चे जमीन पर बैठकर खपड़ैल मकान में पढ़ते थे उन 25 हजार से ज्यादा स्कूलों का पक्कीकरण के साथ बेंच उपलब्ध कराया। स्कूलों में शिक्षक नियुक्ति, सम्मानजनक वेतन तो दिया ही नारी शिक्षा को फोकस कर बिहार की प्रतिभा को नया रंग देकर देश-दुनिया में आईकॉन बन गए है।
नीतीश राजनीति के मंजे खिलाड़ीः
बिहार में एनडीए की सरकार बनने के साथ ही विपक्ष हमलावर तो हुई मगर बाद में उसने भी सधे कदमों से चलना शुरु कर दिया। हलांकि सूबे की सियासत में इससे बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को नहीं मिल रहा है। नीतीश कुमार को भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया भी। लेकिन बाद में दबाव की राजनीति भी देखने को मिली मगर सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि सहयोगी दल के लाख कसरत करने के बाद भी नीतीश का विकास मॉडल सभी को उनका मुरीद बना दिया है। अरुणाचल प्रदेश में जदयू के 6 विधायकों को भाजपा ने अपने मिला लिया। बावजूद उसके नीतीश कुमार ने कुछ भी नहीं बोला, लेकिन उनकी चुप्पी को भाजपा को भी कम आंकना भूल होगी। नीतीश राजनीति के ऐसे मंजे हुए खिलाड़ी हैं कि विकास के साथ सियासी चाल में भी उनका कोई सानी नहीं हैं। वहीं बिहार में कांग्रेस के 11 विधायकों के जदयू में आने की खबर से सहयोगी दल को भी एक बड़ा झटका लगेगा। नीतीश कुमार फर्म में हैं और बिहार के विकास के लिए लगातार दौरा कर रहे हैं। अब ऐसे में देखने वाली बात ये है कि आगे राजनीति में बिहार ही नहीं देश में भी नया गुल खिलने की बातों से इंकार नहीं किया जा सकता है।