हमने अपने कर्तव्य से कभी मुंह नहीं मोड़ा, जो जिम्मेदारी मिली उसको सशक्त तरीके से निभाने में विश्वास करती हूं। कौन क्या कहता है इसकी परवाह नहीं बल्कि मुझे जिस कार्य की जिम्मेवारी दी गई है उसको सही तरीके से संचालन कर उसे मुकाम तक पहुंचा सकूं, इसके लिए लगातार कोशिश करती रहती हूं। हमारी संस्कृति ही हमारी धरोहर है, इसका संरक्षण हमारा दायित्व है। ये कहना है बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड अध्यक्ष डॉ. भारती मेहता की।
निष्ठा ने बनाया ऑइकॉनिकः
बोर्ड की शिक्षा व्यवस्था से लेकर परीक्षा, शिक्षक एवं कर्मचारियों की परेशानी और उनकी जरुरतों को ध्यान में रखकर काम कर रही हैं। नीतीश सरकार में बिहार के विकास का नया इतिहास लिखा जा रहा है। जिस उम्मीद के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डॉ. मेहता को जिम्मेदारी संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष की जवाबदेही सौंपी है उसको बाखूबी निभा रही हैं। अपने अथक प्रयासों से बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड को उसका पुराना गौरव वापस दिलाने के लिए डॉ. भारती मेहता लगातार पूरी निष्ठा के साथ काम को निष्पादित कर रही हैं।
महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीः
बिहार के मधुबनी जिले के बाबूबरही प्रखंड के अत्यंत पिछडे़ गांव बलानसेर की बहू डॉ. भारती मेहता संस्कृत शिक्षा बोर्ड की अघ्यक्ष बनाई गईं। डॉ. भारती की प्रारंभिक शिक्षा सेंन्ट्रल स्कूल सूतिहारा, सीतामढी से हुई। बिहार बोर्ड से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के उपरांत पटना युनिवर्सिटी से स्नातक और फिर इसी विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए की डिग्री हासिल किया। इनके कदम यहीं आकर नहीं थमें बल्कि ‘वरदम्बिका परिणय चम्पू’ विषय पर ये डॉक्टरेट की उपाधि हासिल कीं।
राजनीतिक सफरः
महज 21 वर्ष की आयु में वर्ष 2002 में जदयू की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण ली। वर्ष 2006 से लेकर बाबूबरही प्रखंड अंतर्गत जिला पर्षद क्षेत्र संख्या 33 से जिला पार्षद चुन ली गईं। शिक्षा समिति की जिला अध्यक्ष चुनी गईं। वर्ष 2009 में जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य चुनी गईं। इनकी कार्यशैली को देखते हुए वर्ष 2014 में पार्टी की प्रदेश प्रवक्ता बनाया गया। फिर क्या डॉ मेहता ने अपनी सूझबुझ और स्पष्टवादिता के बूते महिलाओं की आवाज बनकर उनकी आवाज को बुलंद करने को लेकर पीछे मुड़कर नहीं देखा। युवा वर्ग के प्रति ऊंची सोच और अच्छी सोच की वजह से समाज सुधार वाहिनी की प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता का दायित्व सौंपा गया।
इनसे जब भी बातें की जाती हैं ये कहती हैं- बिहार बोर्ड की तरह ये संस्कृत शिक्षा बोर्ड को भी सजाने व धरातल पर लाने का प्रयास करेंगी। एकेडमिक कैलेन्डर लागू करना व परीक्षा सत्र को नियमित करना इनकी प्राथमिकताओं में शामिल है। संस्कृत स्कूलों के पठन-पाठन में सुधार के साथ बोर्ड को सुचारु रुप से चलाने को लेकर आवश्यक कदम उठाया। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा ही नहीं बल्कि हमारी संस्कृति का धरोहर है। इसको बचाने के लिए सबको आगे आना होगा, तभी हमारी सभ्यता, हमारी संसकृति की स्मिता कायम रह पाएगी।
कोरोनाकाल में सलिके से काम कियाः
वैश्विक महामारी कोरोना के दौर में मध्यमा परीक्षा-2020 पर ब्रेक लग गया था। कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के लिए देश भर में कई बार लॉकडाउन लागू था। शिक्षण संस्थान लंबी अवधि तक बंद रहे। जिस कारण मध्यमा परीक्षा-2020 का आयोजन नहीं हो सका। हलांकि बोर्ड ने 12 अप्रैल से 18 अप्रैल 2020 तक परीक्षा लेने का निर्णय लिया था। इसके बाद बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड, पटना ने निर्णय लिया कि मध्यमा परीक्षा-2020 का आयोजन भी मध्यमा परीक्षा-2021 के साथ ही वर्ष 2021 में किया जाएगा। मध्यमा की परीक्षा राज्य भर में 99 परीक्षा केंद्रों पर शांतिपूर्वक संचालित हो रही हैं। इस परीक्षा में लगभग 32 हजार अभ्यर्थी शामिल हुए हैं।